Thursday, September 4, 2014

एक देश में एक मध्यवर्गीय व्यक्ति रहता था। उसका नाम राजा माधव था। रोजगार की खोज में वह अपना गांव छोड़ कर एक शहर में रहने के लिए आया। शहर में उसने रहने के लिए एक छोटा सा मकान किराये पर लिया। क्योंकि उससे पहले वहाँ कोई नहीं रहता था इसलिए उसने टेलीफोन लेने के लिए आवेदन पत्र दिया। कुछ दिन बाद घर के बाहर टेलीफोन का खंबा और घर में चोंगा तो लग गया परन्तु फोन चालू नहीं हुआ। एक महीने बाद उसके नाम रु.00.00 का टेलीफोन का बिल भुगतान करने के लिए आया। उसने यह सोच कर कि अभी तो फोन चालू भी नहीं हुआ है और उसकी ओर कुछ राशि भी नहीं निकलती उस बिल को कूड़े के डिब्बे में फेंक दिया। अगले महीने उसे पुनः एक पत्र मिला जिस में लिखा गया था कि उसकी ओर रु.00.00 बकाया है। जिसका उसने भुगतान नहीं किया फलतः तुरन्त वह भुगतान कर दिया जाए। उसने पुनः उस बिल को फाड़ कर फेंक दिया।
एक महीने बाद फिर से रु.00.00 का बिल उसे डाक द्वार मिला। अब राजा माधव चौंका। उसने टेलीफोन कम्पनी के अधिकारियों से सम्पर्क किया। उसे बताया गया कि यह सब कम्प्यूटर की गलती के कारण हुआ है। आप चिन्ता न करें सब ठीक कर दिया जायेगा।
राजा माधव ने सोचा चलो समस्या का हल हो गया। दस दिन बाद उसके पास एक पत्र आया कि यदि रु.00.00 का भुगतान तुरन्त न किया गया तो उसकी फोन लाइन काट दी जायेगी। उसने फिर से टेलीफोन कम्पनी के अधिकारियों से बात की। उन्होंने फिर उसे आश्वासन दिया कि आप चिन्ता न करें हम कम्प्यूटर की इस गलती को शीघ्र ही सुधार देंगे। एक महीने बाद जब वह अपने प्रवास से वापिस लौटा तो उसने देखा कि फोन लाइन तो चालू नहीं हुई बल्कि उसका खंबा भी वहाँ से हटा दिया गया है। उसने फिर से टेलीफोन कम्पनी को अपने कार्यालय से फोन किया। फिर से वही बात दोहराई गई कि कम्प्यूटर की इस भूल को जल्दी ही सुधार दिया जायेगा।
अगले ही दिन फिर से उसे बिल प्राप्त हुआ जिसमें रु.00.00 का भुगतान करने के लिए कहा गया था। राजा माधव ने सोचा कि गत दिवस ही तो कम्पनी के अधिकारियों से बात हुई है इस बीच यह बिल भेजा जा चुका होगा। इसलिए उसने कुछ नहीं किया।
एक बीच फिर एक महीना व्यतीत हो गया। अब उसे कम्पनी की ओर से एक नोटिस मिला कि यदि उसने एक सप्ताह के भीतर रु.00.00 का भुगतान न किया तो कम्पनी अपना बकाया वसूलने के लिए कानूनी कार्यवाही करेगी। राजा माधव को बहुत क्रोध आया परन्तु वह कर क्या सकता था। अचानक उसे एक रास्ता सूझा। उसने कम्पनी को उसी के तरीके से उत्तर देने का निश्चय किया। उसने रु.00.00 का एक चैक कम्पनी के नाम काट कर डाक से भेज दिया। तुरन्त ही उसे कम्पनी की ओर से रु.00.00 की पावती और धन्यवाद का पत्र प्राप्त हुआ जिसमें लिखा था कि अब उसके नाम कुछ भी बकाया नहीं रहा है।
चार दिन के बाद उसे अपने कार्यालय में बैंक मैनेजर का फोन आया कि यह उसने क्या किया। कहीं कोई रु.00.00 का भी चैक काटता है। तुम्हारे रु.00.00 राशि के चैक के कारण हमारे कम्प्यूटर की कार्य प्रणाली ठप्प पड़ गई और एक दिन हम बैंक में कोई कार्य नहीं कर पाये। हमारे कितने ही ग्राहकों के चैक वापिस लौट गए।
दस दिन बाद उसके नाम पुनः एक पत्र आया, जिसमें लिखा था कि उसका चैक बिना भुगतान किए बैंक ने वापिस लौटा दिया है फलतः वह लौटती डाक रु.00.00 का भुगतान सुनिश्चित करें अन्यथा कम्पनी अपना बकाया वसूल करने के लिए कानूनी कार्यवाही करने के लिए बाध्य होगी।
हताश राजा माधव एक वकील के पास पहुंचा और उसे सारी स्थिति से अवगत करवाया। वकील उसकी यह बात समझने के लिए तैयार ही नहीं था। उसके वकील का कहना था कि ऐसा कुछ हो ही नहीं सकता। बहुत देर तक तर्क विर्तक करके किसी तरह से राजा माधव उसे इस बात के लिए मनाने में सफल हुआ कि कम्पनी पर तंग करने का मुकदमा तैयार किया जा सकता है।
मुकदमा मैजिस्टेªट के सामने किया गया। मैजिस्टेªट ने कम्पनी को बुला कर कहा कि वह अपने कम्प्यूटर को तुरन्त ठीक करवाये अन्यथा इस मामले को कम्पनी बोर्ड के पास भेज दिया जायेगा। इतना ही नहीं कम्पनी को आदेश दिया गया कि वह राजा माधव को जो असुविधा हुई है उसके बदले में रु.1500 का भुगतान पांच माह तक किया जाये। कम्पनी बैंक को भी वह सारी राशि लौटाये जो उसके ग्राहकों को उनके चैक पास न होने के कारण दंड के रूप में उस दिन देनी पड़ी होगी। मुकदमा दायर करने के लिए राजा माधव ने जो धन व्यय किया है उसका भुगतान भी कम्पनी करे। इतना सब हुआ रु.00.00 के लिए।